
देश में किशोरियां और युवतियां पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। वैसे तो बाजार में कई तरह के सैनिटरी पैड उपलब्ध हैं, लेकिन एक नए अध्ययन में सैनिटरी पैड को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अध्ययन के मुताबिक, सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल महिलाओं के लिए घातक साबित हो सकता है। जी हां, सैनिटरी पैड में ऐसे केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है। जो ना सिर्फ गंभीर बीमारी कैंसर का कारण बन सकता है बल्कि महिला को बांझपन का भी शिकार बना सकता है।
भारत में हर चार में से तीन किशोरियां सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। मासिक धर्म के दौरान सेनेटरी पैड का उपयोग किया जाता है। लेकिन सैनिटरी पैड्स पर हुई एक नई स्टडी में कुछ बातें सामने आई हैं। जो वाकई डरावना है. एक नए अध्ययन के अनुसार नैपकिन के इस्तेमाल से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। बांझपन भी एक समस्या हो सकती है.
एनजीओ की एक अन्य कार्यक्रम समन्वयक और अध्ययन से जुड़ी आकांक्षा मेहरोत्रा ने कहा कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि सैनिटरी पैड के इस्तेमाल से बीमारी होने की संभावना अधिक है। ये कठोर रसायन महिलाओं पर उनकी त्वचा की तुलना में जल्दी और अधिक प्रभाव डालते हैं। जिससे गंभीर बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है.
एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति बांठिया महेश ने कहा कि यूरोपीय क्षेत्रों में इन सबके लिए नियम हैं, जबकि भारत में ऐसा कुछ खास नहीं है. इसका ख्याल रखा जा सकता है. हालाँकि यह बीआईएस मानदंडों के अंतर्गत आता है। लेकिन इसमें रसायनों को लेकर कोई नियम नहीं है.
64 फीसदी लड़कियां कर रही हैं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, 15 से 24 साल की उम्र के बीच की लगभग 64 फीसदी भारतीय लड़कियां सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। हाल के दिनों में बढ़ती जागरूकता के कारण भी इसका उपयोग बढ़ा है।
IMARC ग्रुप के मुताबिक, भारत सैनिटरी उत्पादों का एक बड़ा बाजार है। साल 2021 में अकेले सैनिटरी नैपकिन का कारोबार 618 मिलियन डॉलर रहा। अनुमान है कि साल 2027 तक यह बाज़ार 1.2 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.